Morbid - 1 in Hindi Fiction Stories by Srishtichouhan books and stories PDF | नासाज़ - 1

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नासाज़ - 1

अध्याय एक

पेपरमेंट की मीठी जन्नत


दुनिया एक पागल कुत्ते की तरह आपको काट खाएगी और आप बस उसका निवाला बन जाना, मुझे अब किसी की प्रतिक्रिया से कोई भी फ़र्क़ नहीं पड़ता था, बिल्कुल भी नहीं, मुझे अपने खिलाफ उठ रहे आवाजों के उठते शोर को दबाना आता है, मैं जानता हु कि अगर एक सुलगते सूखे पत्ते पर कही कोई चिंगारी लग जाये तो एक सुखा पत्ता पूरे जंगल को ख़ाक कर सकता है, और यह गलती मैं मेरे दिमाग के जंगल में लगने नहीं देना चाहता किसी भी तरीके से नहीं, मेरे अंदर भी मेरे गहरे ज़ख्म उसी सूखे पत्तों की तरह सूख चुके है बिल्कुल, पर उन जख्मों की धधकती बेबसी की लपटे भी इस सूखे पत्ते को हवा दे रही हैं,

वो उस वक्त भी मेरे सामने ही बोल रहे थे मैं चुप था, वो उस समय भी बोल रहे थे बेबाकी से जब मैं बेबस था, और उन्होंने उस वक्त भी मेरे बारे में बोला जब मैं विरक्त हो जाना चाहता था, पर अब विरक्ति एक परम सत्ता नहीं हो सकती बिल्कुल भी नहीं किसी ओर छोर से नहीं, अब मेरे इस लाचार विरक्ति की कोई प्रत्यन्तर दिशा नहीं थी, मैं अब विरक्त तो था पर विरक्ति अब मेरे खुद की नहीं थी, यह विरक्ति अब एक गैर सोच से पनपी थी, जिसके तालुकात नाजायज़ थे पर बेबुनियाद नहीं, इनकी बुनियाद इन्हीं लोगों के अपमान के तरकश के वो तीर थे जो अब मेरे जिंदा लाश हो चुके सिने की जान ले चुके थे, यह नयी विरक्ति उन्ही के कातिल तंज कसते बाण से उपजी थी जो मुझे मोक्ष की प्राप्ति नहीं करवा सकते, पर मुझे एक एहसान फ़रामोश, एक अवसरवादी नालायक खलनयाक जरूर बना सकते है,

यह शहर की रंगत मेरे जुर्म की दास्ताँ सुनाने को बेताब थी, यह सुनने वाले और मेरे खिलाफ सबुत ढूँढने वालों दोनों की खिदमत में खड़ी थी, आज मुझे अपने ही एक गद्दार साथी को जन्नत पहुचाने जाना था और मै सिर्फ रास्ते में था, मेरी ब्लैक एसयूवी कार में मै इसी गहन चिंतन में डूबा हुआ था कि बाबील को कैसे मारू, मुझे समझ नहीं आ रहा था बिल्कुल भी, किसी भी तरीके से नहीं, मैं अब मासूमियत नहीं देखना चाहता था, ड्राइवर ने गाड़ी की रफ्तार तेज़ दौड़ाई थी, यहां की सड़के हिचकोले नहीं देती , ये चौड़ी और स्मूथ थीं बिल्कुल मक्खन से तर वो टोस्ट की तरह जो मुझे मेरे कम शक्कर वाले कड़वे करेले से भी ज्यादा अधिक कड़वे काली शक्कर रहित चाय के साथ खाने में पसंद थी, बिल्कुल ठीक उसी तरह यहाँ की सड़कें थीं , मुलायम कंक्रीट वाली सख्त सड़के , एक लंबी सुखद यात्रा के लिए , मैंने अपने डार्क नीले रंग की रेट्रो जैकेट के बाई जेब में हाथ डाला उसमे मुझे एक तड़पता कॉकरोच मिला , हैरत की बात यह थी कि ये, कमबख्त अभी तक जिंदा था, नामुमकिन कोई तीन घण्टे मेरी मेहेंगी रेट्रो कोट में बिना मेरी मर्ज़ी के इतने देर तक जिंदा कैसे रह सकता है , मेरे गिरोह के आदमी क्या सोचेंगे कि पापलोस एक कॉकरोच नही मार पाया तो वो एक आदमी , वो भी एक गद्दार आदमी को भला कैसे मार पायेगा , मैंने कॉकरोच जो कि अभी भी अपनी अधमरी हालत में अपने सांस प्रणाली में थोड़ी ऑक्सीजन की दरकार कर रहा था , हाँ! उसी हल्के भूरे बादामी रंग वाले थोडे थोड़े काले धब्बे वाले तिलचट्टे को में अपने लंबे नाखून वाले दाहिने हाथ की उभरी हथेली में रखा और उसे पहले एक टक पैनी नज़र से घूरा , मैं उसे घूर रहा था,उसके एक एक कदमों की आहटों को महसूस करता, मैं उसके सूक्ष्म दिमाग का पोस्टमार्टम कर रहा था ,क्योंकि महान फिजिस्ट आइंस्टीन ने कहा है कि ' सबसे खूबसूरत आइडियाज़ सबसे सूक्ष्म दिमाग से आते है' , मैं आंइस्टीन के इस वक्तव्य का परीक्षण करना चाह रहा था , कि क्या वाकई में ऐसा होता है , या हो सकता है ?

वह सांस से व्याकुल तिलचट्टा अब मेरे चौकोर हथेली के आस पास घूमने लगे , ऐसा लग रहा था कि मानो वह कोई जंगली भील कबीले का सदस्य था, अपने पिछले जन्म में , उसकी काली राई के समान दो छोटी छोटी आँखे एक ऐन्टेना की तरह अपने माहौल का जायजा ले रही थी, मेरा मुह अभी आधा खुला हुआ था , फिर मैंने देखा कि वहाँ सूंघता हुआ वापस मेरे जैकेट के जेब में जाने की कोशिश कर रहा था , पर मैं ऐसा नही होने दें सकता था , आप चाहे मुझे पागल कहे यह सनकी , मुझे इससे मतलब नही पर यह पिद्दी मेरे दिमाग से ज्यादा खतरनाक नही हो सकता बिल्कुल भी नही , मैने सुना है कि दिन के समय तिलचट्टे विशुद्ध मूर्ख और रात के समय प्रचंड विद्वान बनके घूमते है , इनके दो दिमाग होते है पर उस बेहद लोकप्रिय मुहावरे की तरह इनका दूसरा दिमाग घुटनों में ना होकर पेट के किनारे भागमें होता है , और मजे की बात यह थी कि अभी रात थी ,मतलब ये दिमाग से चुस्त था , और अपने ठिकाने का पता ढूंढ रहा था , पर मैं ऐसा कभी नही होने दूंगा , मैंने उस तिलचट्टे को अपने हथेली से उठाकर मेरे जीभ के ऊपर रख दिया, जिसे मैंने अभी ही अपने निम्बू फ्लेवर के पेपरमिंट को चूसने के लिए बाहर निकाला था , और ताजुब की बात यह थी कि कॉकरोचों को वैनिला से ज्यादा पेपरमिंट की महक ज्यादा लुभावनी मालूम पड़ती है , यह बात मैं अच्छी तरह से जानता था , तभी तो मैंने अपनी निम्बू फ्लेवर वाली मीठी चुस्की गोली अपने जीभ में रखी और कॉकरोच को मेरे तालु के किनारे हिस्से पर बैठा दिया , और इससे पहले की वह मेरे चीज़ को छूने की हरकत कर पाता मैंने अपना जीभ वापस अंदर लेलिया , और अपना दांत किटकीटा कर बंद कर दिया , और अपने दोनों जबड़ों को उनके अंतिम छोर तक फैला कर एक बेहद खूबसूरत मुस्कान बिखेर दी ,

जबरदस्ती की हँसी , और जो मुझसे गुस्ताखी करेगा उसकी सजा, आइंस्टीन सही था पर मैं भी तोह गलत नही हो सकता न ?

मेरी कार की रफ्तार तेज थीं, मुझे तेज़ी पसंद है ,मुझे धीमा पैन बिल्कुल भी पसंद नही है , पर हां मुझे अपनी मालिश कराने में हद से ज्यादा एक कछुए से भी ज्यादा धीमे और हल्के हाथों की मालिश पसंद है , उसमें तेजी की कोई गुंजाईश नहीं , हल्के मुलायम हाथ मेरी पीठ पर , मैंने अपने हाथों को देखा उसमे दस अलग अलग रंग और मेटल के अंगूठी पड़े थे, उसमे से मैंने बीच वाली लंबी उंगली में पड़े तीसरे अंगूठी को घुमाया यह रूबी था, इसे मैंने अरबिया देश से टूर में खरीदा था, इसने शुरुआत में मेरे हाथों में गांठे बना दिये थे , मैं काफी दर्द में था , पर मुझे दर्द टैब पसंद है जब दर्द देने वाले में मज़ा और जर्द हो , कॉकरोच का स्वाद मेरे मुंह में किसी गंदे बदबूदार कुरकुरे मठरी के जैसा लगा , बेस्वाद पर मैं इसे थूक नहीं सकता था ,

मैं इसे गटक गया , और मेरे ड्राइवर ने अचानक गाड़ी रोक दी , हम फैक्ट्री पहुच चुके थे, रात किसी रोंदू लड़की के गोल आंखों के फैले काजल की तरह था , बिल्कुल काली रात , उसका कोई वजूद नही , मैं अपनी गाड़ी से कदम रख चुका था, और फैक्ट्री में अंदर जाने लगा, यह एक लोकल बार भी था , यहाँ आज एक पोल डांस हो रहा था क्योंकि आज का दिन शनिवार का दिन था , और आज हमारे बार में नचनिया ग्रुप की सबसे सुंदर हुस्न की परी , महजबिन का कामुक डांस था , मैं उसे किसी भी कीमत में मिस नही कर सकता था , पर पहले मुझे अपने गद्दार को जन्नत पहुचाना था, और यह काम मैं महजबीन के पोल डांस के शुरू होने से पहले निपटाना चाहता था , मोपी जो कि मेरा एक खास आदमी था , उसने मेरे पास आकर कहा , " बॉस ! बाबिल को अंदर बांध दिए है , अब बस आपकी ही राह देख रहे थे , " मोपी एक ऊंचे कद काठी वाला गर्म खुन वाला लड़का था , वह एक ऐसा पालतू घोड़ा था जो रेस के मैदान में आपका सबसे अच्छा सवारी बन सकता था पर साथ ही साथ वह आपके हारने या दुश्मनो से घिरने पर आपकी जान बचाने वाला भी देवदूत था ,

मैंने अपनी मुंडी हिलायी और बिना कुछ बोले फैक्ट्री के पिछले हिस्से की तरफ़ बढ़ता गया , यह फैक्ट्री शहर के सबसे दूर के एक गाँव के पास बनी थी, एक पगडंडी वाला रास्ता, फिर थोड़े जंगली पेड़ और फिर थोड़ा पगडंडी और फिर थोड़े जंगली झुरमुट वाले पेड़ , दरवाजे पर मेरे तीन आदमी बंदूक के साथ पहरा दे रहे थे , मुझ3 देखते ही सलाम ठोका और सीन उसके तय आकार से कुछ ज्यादा चौड़ा कर खड़े होगए , मैं अंदर गया, यह काम भीड़ के महकमे वाला नही था , यह बात मेरे गिरोह के लिए काफी अहम थी , और हम बाकी गुर्गों कोहाइ बता सकते थे कि हमे अपने ही एक आदमी से दगा मिली , सिर्फ मोपी और तालिप और साथ में चुन्नू और सरिया थे , एक कोने में अधमरी हालत में बाबिल बंधा था, उसके मुंह के आसपास उसीके थूक की एक परत गोलाकार रूप में जम गई थी, जिसमे खून के धब्बे भी मिक्स होगये थे , और आंखें किसी पांडा की तरह सूझ कर काली पड़ गयी थी ,

मेरी नजर उसके जबड़ों पर गयी, काफी गहरे चोट के निशान थे, लगता है उसकी ठुड्डी टूट गयी थी , दांतो की बत्तीसी अब बत्तीसी न रह कर पच्चीसी ही बच गयी थी, बहोत बुरी तरीके से पीटा था , मैंने उसके फटे जेब को झाँका , उसमे एक मूवी की टिकट लटक रही थी , जिसके खुद के किनारों के पुर्जे अलग हो गए थे, मैने लटकती टिकट पकड़ी और उसके फ़टे कागज को खोलकर देखा उसमे लिखा था शाम सात बीस पर , 'आवारा प्रेमी' टिकट हाल का नाम था , लफूटगंज सिनेमा हाल, मैंने टिकट फाड़ कर जमीन में फेंक दी , फैक्ट्री में हर जगह बोरिया फैली थी , लोगो को लगता था कि यह एक धर्मकांटा है, यह गेहूं तौली जाती है , और कुछ हद तक लोग सही भी थे , यह गेहू तौली तो जाती थी पर यह बेवफाई, गद्दारी , धोखेबाजी और रंगदारी भी तौली जाती थी , फिर हिसाब होता था , वो भी सूद समेत , कोई बख्शीश नही , कोई तौबा नही , सिर्फ सजा,

मैंने बाबिल के भोले से दिखने वाले चेहरे की मक्कारी को अच्छे से पड़ताल करवाया , और फिर खुफिया खबर में जो भी जानकारी मिली वह हिलाकर रख देने वाली थी , बाबिल ने एक किलो कारतूस बउवा गैंग को तिगुना दाम पे बेच दिया था , और साथ ही साथ मेरे गिरोह की निजी बातो को भी बाबिल मिया बेच आये थे , यह पतलून जो बाबिल चौधरी अभी पहना था वह मैने ही उसे पिछले दीवाली में दिया था, यह भूरा बम्बइया पतलून मैं बम्बई के एक कपड़े दुकान से खरीद कर लाया था क्योंकि बाबिल की चतुराई से ही साठ परसेंट का मुनाफा का तोहफा भी हमने खाया था , अब वह पतलून बम्बइया न रहा वह अब बिचोलिया बन गया था , लेकिन बाबिल अब भी बाबिल था , बस अब वह लेफ्ट विंग का हमारा आदमी नही था वह एक गद्दार था और वह पतलून अब भूरी न रह कर गीली हो गयी थी , और बाबिल से बिना भाव विनिमय करके मैंने अपने नीले कोट के जेब से नई पेपरमिंट की मीठी गोली निकाली , पहले उसे अपने जीभ में रखा और फिर बाबिल के चेहरे को अपने हाथ के कैमरे के फोकस से अपनी बाई आँख को छोटा करके मेरे हाथों के फ्रेम में क्लिक किया , और फिर अपनी पेंट के पीछे से मेरी सुंदरी सफीना को बाहर निकाला , कहते है जन्नत भेजने से पहले कुछ मीठा खिलाके भेजना चाहिये तो मैंने अपने मुँह की मीठी गोली बाबिल के अधमरे मुह में ठुसी और चार बार सफीना के धातू वाले छोटे छोटे ज़हर के गोली भेजे में उतार दी , बाबिल अब मजे से जन्नत की टिकट कटवा बिज़नेस क्लास वाले ऐसी सेक्शन में ऊनी जन्नती उड़ान भर चुका था , उसके सांसारिक कपड़ो को यही लाग रंगों में रंगता छोड़ वह अब रणछोड़ बनगया था , उसके सांसारिक कपड़े रूपी शरीर की जिम्मेदारी अब हमारी थी , लेकिन पेपरमिंट की एक मीठी गोली तो उसके लिए भी लगनी थी